Saturday, 14 April 2018

बृजराज सिंह की कविता मेरी प्यारी आसिफा

मेरी प्यारी आसिफा

प्यारी बेटी आसिफा
हमने तुम्हे सब सिखाया
गिरना सम्हलना उठना
चलना भागना दौड़ना
तितलियों से खेलना भी सिखाया
ढोरों से बतियाना
फूलों से कोहनाना भी सिखाया

सिखाया था मैंने कि
बड़ों की इज़्ज़त करना
सबसे प्यार से रहना
सबका कहा मानना
सबकी मदद करना
लोगों से हंस कर मिलना

तुमने खुद सीख लिया था
अभाव का गम न करना
नदी-सी निश्छल-बेफिक्र बहना
उड़ते पंछी के परों को बांधना
उड़ना भी अब तुम सीख ही रही थी

अभी तो तुम केवल आठ साल की थी
अभी तो बहुत कुछ सीखना सिखाना बाकी था
तुमने सीख लिया था हिरनों-सा कुलांचे मारना
घोड़ों की तरह हवा से बातें करना
पत्तियों के मुरझाए उदास चेहरों से तूफ़ां का सही अंदाजा लगाना भी सीख लिया था तुमने

लेकिन अफ़सोस
मेरी प्यारी बेटी आसिफा
उस दिन कुछ काम न आया
मैंने तुम्हें नहीं सिखाया कि
जंगल में जानवरों से नहीं आदमी से डरना
बुतों से मदद की उम्मीद मत करना
किसी टीका-टोपी वाले के बहकावे में मत आना

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