Saturday, 21 April 2018

प्रदीपिका सारस्वत की कविता ध्वंश के इस काल में

प्रदीपिका सारस्वत

ध्वंस के इस काल में 

हथियार उठा लो, लड़कियों
पैने कर लो 
दांत और नाखून
इज़्ज़त और आबरू नाम का महीन रेशम
तुम्हें कमज़ोर कर देने की साज़िश भर है
मत देखो उनके चेहरे
जो तुम्हें सिखाते हैं
कि शर्म तुम्हारा गहना है

तुम्हें सीखना होगा
कि तुम्हारी कोख, तुम्हारी ताकत है
मत पालने दो उसे, किसी की कमज़ोरी
नाज़ुक देह पर जब तक इतराती रहोगी
तुम बनी रहोगी सजावटी सामान, खुली तिजोरी

उठो, निकलो, देखो, चुनो और खत्म कर दो सब कुछ
जो दूर करता है तुम्हें, तुम्हारे होने से
काट दो सब खूबसूरत जाल

ध्वंस के इस काल में 
तुम बनी रहीं कोमलांगी
तो उसके दिए निशानों को 
उसके गहनों तले छुपाए
गाती रहना शोकगीत
उसकी संस्कृति के उत्सवों में 
और देखना, तुम्हारी अपनी संस्कृति की कहानी
तुम्हारे आंसू, तुम पर हंसते हुए लिखेंगे

No comments:

Post a Comment

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...