Saturday 21 April 2018

सुमन केशरी की कविता बेटी

सुमन केशरी

बेटी

इतना डर है बिखरा हुआ कि
मन में आता है
तुम्हें बीज के अंतर्मन में
छिपे अंकुर-सा
अपने भीतर ही पालूँ
तब तक 
जब तक कि तुम पूर्ण पेड़ न हो जाओ 
पर फिर लगता है कि क्या तब तुम 
झेल सकोगी
धूप के ताए
हवा के थपेड़े
बिजली के गर्जन-तर्जन को
क्या जमा सकोगी अपने पाँव 
पृथ्वी पर मजबूती से..

डर डर कर भी
बिटिया
इतना तो जान चुकी हूँ
अपने दम पर कि
तुझे बीज की तरह
उगना पड़ेगा
अपने बूते ही
अपने हिस्से की धूप, हवा और नमी पर हक जमाते...

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