Saturday, 14 April 2018

बलात्कार के विरुद्ध अमिताभ बच्चन की कविता

समय चलते मोमबत्तियां, जल कर बुझ जाएंगी..

श्रद्धा में डाले पुष्प, जलहीन मुरझा जाएंगे..

स्वर विरोध के और शांति के अपनी प्रबलता खो देंगे..

किंतु निर्भयता की जलाई अग्नि हमारे हृदय को प्रज्जवलित करेगी..

जलहीन मुरझाए पुष्पों को हमारी अश्रु धाराएं जीवित रखेंगी...

दग्ध कंठ से 'दामिनी' की 'अमानत' आत्मा विश्व भर में गूंजेगी..

स्वर मेरे तुम, दल कुचल कर पीस न पाओगे..

मैं भारत की मां बहन या या बेटी हूं,

आदर और सत्कार की मैं हकदार हूं..

भारत देश हमारी माता है,

मेरी छोड़ो अपनी माता की तो पहचान बनो !!

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