Thursday 19 April 2018

सीमा आजाद की कविता - अगर तुम औरत हो

"अगर तुम औरत हो"

अगर तुम
कश्मीरी औरत हो
तो राष्ट्रभक्ति के लिए हो सकता है
तुम्हारा बलात्कार,
बलात्कारियों के समर्थन में
फहराये जा सकते हैं तिरंगे।

अगर तुम
मणिपुरी या सात बहनों के देश की बेटी हो
तो भी रौंदी जा सकती हो तुम,
राष्ट्रभक्ति के लिए
तुम्हारी योनि में
मारी जा सकती है गोली।

अगर तुम
आदिवासी औरत हो
तो तुम्हारी योनि में
भरे जा सकते हैं पत्थर
और कभी भी
काटा या निचोड़ा जा सकता है
तुम्हारा स्तन।

अगर तुम
मुस्लिम औरत हो
तब तो
कब्र में भी सुरक्षित नहीं हो तुम,
कभी भी निकाला जा सकता है तुम्हें
बलात्कार के लिए
फाड़ी जा सकती है तुम्हारी कोख
मादा शरीर की खोज में।

अगर तुम
दलित औरत हो
तो सिर्फ पढ़-लिख जाने के कारण
लोहे की रॉड डाली जा सकती है
तुम्हारी योनि में
खैरलांजी की तरह।

अगर तुम
सवर्ण औरत हो
तब भी सुरक्षित नहीं हो तुम
गैंग रेप की बात ज़ुबान से निकालने भर से
हत्या की जा सकती है
तुम्हारी या तुम्हारे पिता/भाई की।

अगर तुम
पुरूष सत्ता को
चुनौती देने वाली औरत हो
तो धमकियां बलात्कार की ही मिलेंगी
हो भी सकती हो बलत्कृत
किसी पुलिस थाने या हवेली में।

तुम कुछ भी हो
अगर औरत हो
तो हो निजाम के निशाने पर

इसलिए
अगर तुम औरत हो
तो बहुत ज़रूरी है
घरों से बाहर निकलना
सड़कों पर उतरना
और भिड़ना उस फासिस्ट निजाम से
जिनके लिए
हम औरतें
केवल शरीर हैं,
जिनका बलात्कार किया जा सकता है
अनेक वजहों से
कहीं भी, कभी भी।

- सीमा आजाद

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