इस जीवन मे बस इतना ही नही हुआ
कहीं तुम्हारा मन था मैंने कहीं छुआ....
कहीं तुम्हारा मन था मैंने कहीं छुआ....
पांव तुम्हारे छूने को नजरें सोची
सांसो ने भांपा तन की तन्हाई को
कंठो ने सोचा तेरी हर बात कहे
मौन देखता रहा लबे रुसवाई को
आंखों से बस इतना ही ही नही हुआ
दर्पण पर उतरा कागज़ पर नही चुआ....
सांसो ने भांपा तन की तन्हाई को
कंठो ने सोचा तेरी हर बात कहे
मौन देखता रहा लबे रुसवाई को
आंखों से बस इतना ही ही नही हुआ
दर्पण पर उतरा कागज़ पर नही चुआ....
हाथों में अभिमान कुलाचे मारे थे
सीने पर सर रख सोई अनुभूति थी
नीली थी ग्रीवा पलको के कोरों से
देह हमारी इडा की स्तुति थी
सीने पर सर रख सोई अनुभूति थी
नीली थी ग्रीवा पलको के कोरों से
देह हमारी इडा की स्तुति थी
इन सांसो से बस इतना ही नही हुआ
जहां लगाई आग छुपाया वहीं धुआं
जहां लगाई आग छुपाया वहीं धुआं
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