एक कविता आसिफा को समर्पित ...........
(सुनो मन्दिर के देवताओं )
सुनो मन्दिर के देवताओं
तुम कहाँ थे उस वक्त
जब दिया जा रहा था बच्ची को ड्रग्स
तुम कहाँ थे उस वक्त
जब दिया गया बच्ची को करन्ट
तुम कहाँ थे उस वक्त
जब हैवानों की टोली
बच्ची के ऊपर से गुजर रही थी
तुम कहाँ थे उस वक्त
जब छीन ली गई उसकी आखिरी सांस
शायद ?
तुम इसलिए कुछ नहीं बोले
कि बच्ची तुम्हारे मज़हब की नहीं थी
हमने तो सुना था ईश्वर एक है l
तुम क्यों नहीं निकले पत्थरों से बाहर
क्या तुम्हारा कलेजा मुंह को नहीं आया
क्या तुम्हारी आंखे फट नहीं गयी
क्या तुम्हारी आत्मा ने तुम्हें नहीं झकझोरा
अगर नहीं ..............
तो धिक्कार है तुम्हारे देवता होने पर
तुमने आज यह साबित कर दिया
कि तुम अपराधों को ढ़कने की
एक चादर मात्र हो और कुछ नहीं..........l
आरती 'चिराग' 11-4-2018
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