दो पद
एक
साधो रेप-वेप मत कीजे l
माया से बचना नित प्रति ही, अबला पे न पसीजे l
ब्रतधारी तुम, प्यास लगे तो बूड़ के पानी पीजे l
करौ सिकार, खून मत पोतो, दोस आन को दीजे l
जाति-धरम का मान न छीजे, अपजस कबहुँ न लीजे l
जिनगी माठा ना होइ जाए, काहू पे न पतीजे l
पाग पंक में सन जाए तो राज सरन गहि लीजे l
दो
पुरुष बड़े तुम अत्याचारी!
तुम्हरे कारन जीना दूभर, जिनगी हो गई भारी l
बुद्धि-बिबेक तेल गए लेने, मति हो गई मतवारी l
बेटी-बहिन न तुम पहिचानो, संपत नारि तुम्हारी l
कुछ के कारन सिगरे मनई खाते निस दिन गारी l
घर से पेट भरे ना तुम्हरो, चाटो आन की थारी l
हम अबला ना, पल में देइहैं पौरुख तुम्हरो झारी l
तुम्हरी लंका खातिर औरत बनिहैं आज लुकारी l
—चन्द्रदेव यादव
हिंदी के विद्वान प्रो चंद्रदेव यादव जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं।
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