बेटी की कविता पिता के लिए
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यार पिता
वैसे तो संभावनाएं इसकी पांच पर्सेंट की ही हैं
पर ये पांच ही चाहिए मुझको दुनिया से
जैसे काया के तत्व सब पांच
हम दोनों अपने ख़ानदानी वटवृक्ष सरीखे महुवे के पेड़ के नीचे
जहाँ हमारे सब पुरखे सोते हैं
कभी अगल बगल बैठेंगे
और सुनेंगे कि कैसे कुमार गन्धर्व गाते हैं
'जग दर्शन का मेला'
-मृगतृष्णा
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