बलात्कार पर कविता - अरुण मिश्रा
मिटा सके जो दर्द तेरा
वो शब्द कहाँ से लाऊँ
चूका सकूं एहसान तेरा
वो प्राण कहाँ से लाऊँ
खेद हुआ है आज मुझे
लेख से क्या होने वाला
लिख सकूं मैं भाग्य तेरा
वो हाथ कहाँ से लाऊँ
देखा जो हालत ये तेरा
छलनी हुआ कलेजा मेरा
रोक सके जो अश्क मेरे
वो नैन कहाँ से लाऊँ
ख़ामोशी इतनी है क्यों
क्या गूंगे बहरे हो गए सारे
सुना सकूं जो हालत तेरी
वो जुबाँ कहाँ से लाऊँ
चिल्लाहट पहुँचा सकूं मैं
बहरे इन नेतावो को
झकझोर सकूं इन मुर्दॊ को
वो अलफाज कहाँ से लाऊँ
No comments:
Post a Comment