Saturday, 14 April 2018

अरुण मिश्र की बलात्कार विरोधी कविता

बलात्कार पर कविता - अरुण मिश्रा

मिटा सके जो दर्द तेरा
वो शब्द कहाँ से लाऊँ
चूका सकूं एहसान तेरा
वो प्राण कहाँ से लाऊँ

खेद हुआ है आज मुझे
लेख से क्या होने वाला
लिख सकूं मैं भाग्य तेरा
वो हाथ कहाँ से लाऊँ

देखा जो हालत ये तेरा
छलनी हुआ कलेजा मेरा
रोक सके जो अश्क मेरे
वो नैन कहाँ से लाऊँ

ख़ामोशी इतनी है क्यों
क्या गूंगे बहरे हो गए सारे
सुना सकूं जो हालत तेरी
वो जुबाँ कहाँ से लाऊँ

चिल्लाहट पहुँचा सकूं मैं
बहरे इन नेतावो को
झकझोर सकूं इन मुर्दॊ को
वो अलफाज कहाँ से लाऊँ

No comments:

Post a Comment

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...