Friday, 13 April 2018

बलात्कार - स्मिता तिवारी 'बलिया'

बलात्कार

बलात्कार
प्रतिदिन
प्रतिक्षण
होता है।।

कभी निगाहों से
कभी बाहों  से-
अपने; मसलकर
बलात्कारी डँसता है।।

संस्कृति
सभ्यता
स्त्री का कोमल मन
वेदना से चीख़ता है।।

बेहोश
बेखबर
बदहवास बनकर
समाज सोता है।।

स्मिता तिवारी 'बलिया'

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