बलात्कार
बलात्कार
प्रतिदिन
प्रतिक्षण
होता है।।
कभी निगाहों से
कभी बाहों से-
अपने; मसलकर
बलात्कारी डँसता है।।
संस्कृति
सभ्यता
स्त्री का कोमल मन
वेदना से चीख़ता है।।
बेहोश
बेखबर
बदहवास बनकर
समाज सोता है।।
स्मिता तिवारी 'बलिया'
व्याकरण भाषा का हो या समाज का व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना जिनके अधिकार क्षे...
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