Monday, 16 April 2018

शशांक मुकुट शेखर की कविता

बकरियों से ज्यादा उन्हें गाय से प्यार था
और बेहद शख़्त लकड़ियों के बने कबूतरों के घरों के दरवाजे उनके डैने से थोड़ा(बहुत) कम खुलते थे

रामप्रसाद जी का मानना था कि
ब्रह्म मुहूर्त में शौच शरीर के लिए रामबाण है
शरीर लाभ लेने जाते जत्थे ने
अगले छह महीनों में नहर किनारे के शीशम के आधे पेड़ चर लिए थे
अगले कुछ सालों तक गांव में जितनी मृत्यु हुई
सब नहर किनारे पेड़ों की जगह पेड़ बन गए
उन सालों में बच्चे सबसे ज्यादा मरे थे गांव में

समय बीतता गया
पेड़ गायब होते गए
बकरियों को गाय ने चर लिया
कबूतरों को नहर पर
पेड़ बनने छोड़ दिया गया

रामप्रसाद जी आजकल राम का प्रसाद बांटते फिरते हैं
उनका जत्थे के कुछ लोग अयोध्या
और कुछ आसपास के मंदिरों में राम की खोज के लिए अनुशंधान में व्यस्त है
खबर है कि वे सरकार द्वारा अनुशंधान के लिए राशि आवंटित करने की प्रतीक्षा में हैं

गांव के अन्य लोग तब घास खाने में व्यस्त थे
आज घास उन्हें खाने में व्यस्त है.

शशांक मुकुट शेखर

No comments:

Post a Comment

Featured post

व्याकरण कविता अरमान आंनद

व्याकरण भाषा का हो या समाज का  व्याकरण सिर्फ हिंसा सिखाता है व्याकरण पर चलने वाले लोग सैनिक का दिमाग रखते हैं प्रश्न करना  जिनके अधिकार क्षे...