Saturday 21 April 2018

अशोक कुमार पांडेय की कविता बुरे समय की कविताएं

बुरे समय की कविताएं
_______________

(एक)

छिपता है राम की ओट मे बलात्कारी
हत्यारा कंधे पर हाथ रखे करता है अट्टहास
घायल कबूतर का लहू सूखता जाता है माथे पर
लुटेरा तूणीर से निकालता है तीर और सर खुजाता है

मूर्तियों के समय में कितने निरीह हो तुम राम
और कितने मुफ़ीद

-
(दो)

तिरंगा उसके हाथों मे कसमसाता है
रथ पर निःशंक फहराता है भगवा
एक पवित्र नारा बदलता है अश्लील गाली में
और ढेर सारा ताज़ा ख़ून नालियों का रंग बदल देता है

भावनाएं सुरक्षित
आत्माएं क्षत-विक्षत

-
(तीन)

लड़की की उम्र आठ साल
देह पर अनगिनत चोटों के निशान
झरने की तरह बहता ख़ून
कपड़े फटे
आँखें फटीं

प्रतिवाद करता है हत्यारा
लेकिन उसका नाम तो आसिफा है न!

-
(चार)

भूखी है जनता आधी
आधी की देह पर धूल के कपड़े
आधी जनता पिटती है रोज़
आधी बिना अपराध जेल में
आधी की इज़्ज़त न कोई घर
आधी जनता उदास है

बाक़ी आधी जनता की ख़ुशी के लिए 
बस इतना काफी है।

---
अशोक कुमार पाण्डेय

No comments:

Post a Comment

Featured post

कथाचोर का इकबालिया बयान: अखिलेश सिंह

कथाचोर का इकबालिया बयान _________ कहानियों की चोरी पकड़ी जाने पर लेखिका ने सार्वजनिक अपील की :  जब मैं कहानियां चुराती थी तो मैं अवसाद में थ...