मंदिर वो जगह है जहां से आसिफा कभी नहीं लौटती
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ओ मेरी नन्ही बच्ची
समझाया मैंने तुम्हें
बचना है केवल
जंगली जानवरों से,
पिस्सुओं से, जोंक से
बचाना है अपने घोड़ों को.....
जो जमीं से आसमान तक
फैली हरी घास पर दौड़ते हैं बेखौफ......
और उनके पीछे दौड़ती हो तुम...
आसिफा नहीं अपना ये गाँव
आओ लौट चलें......
देर हुई बहुत
कलेजा मुँह को आता है,
दूर जंगल से आती हैं
आवाजें बहुत,
काश हो कोई जंगलों के बीच
तुमको राह दे
थाम ले हाथ
पकड़े कोई ,
नन्हीं उँगलियों को..
मशालें जल रही हैं और
दौड़े आ रहे हैं लोग,
जंगल के बीच
दो पैरों के भूरे
जानवरों ने तुम्हें झिंझोड़ खाया...
बदनज़र वहशियों ने
खा ली तुम्हारी रूह भी ....
डर जाती है तुम्हारी बहन
मंदिरों को देखकर.......
बुदबुदाती है...
ये वो जगह है जहां से
आसिफा लौटी नहीं .....
नमस्या सिंह
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