Wednesday 11 April 2018

शैलेन्द्र शुक्ल की कविता -क्या यह दुनिया तब भी नहीं बदलेगी !

क्या यह दुनिया तब भी नहीं बदलेगी !
जब नहीं रहेंगी नदियां
सूख जाएंगे सारे तालाब
रेत हो जाएंगी नहरे
बिक जाएंगे सारे फल
कट जाएंगे सारे पेड़
उजड़ जाएंगी सारी फसलें
अत्महत्या कर लेंगे सब किसान
अकाल में मर जाएंगे दुनिया के मजदूर
क्या तब भी यह पूंजी का साम्राज्य जीवित रहेगा !
जब जल जाएंगे चिड़ियों के पंख
उड़ जाएगी सारी धूल
बंजर हो जाएंगे खेत
खलिहानों में जम जाएगी भूरी बर्फ
नहीं बचेगी हवा
प्यास से चीख उठेंगी आँतें
कहीं नहीं होगा सबेरा
सिसक कर मर जाएंगी शामें
बच्चे पैदा होना बंद कर देंगे
क्या तब भी अमेरिका आदर्श बना रहेगा दुनिया का !
क्या जब सूरज बुझ जाएगा सदा के लिए
ब्रह्मांड समा जाएगा किसी ब्लैक होल में
धरती बन जाएगी एक बड़ा उल्का पिंड
चाँद नहीं होगा तनिक भी खूबसूरत
मंगल पर माफिया नहीं बेंच पाएंगे जमीन
क्या तब भी दंगा होते रहेंगे और यह दुनिया नहीं बदलेगी !
जब नहीं आएगा कभी भी बसंत
धधक कर जल जाएगा हेमंत
बारिश स्थगित हो जाएगी सदा सदा के लिए
नहीं बचेंगे सताए हुए कोई गाँव और सुलगते हुए शहर
सारी लड़कियां मारी जा चुकी होंगी बलात्कार के बाद
आत्मदाह कर लेंगे सारे बेरोजगार
उजड़ जाएंगी सारी बस्तियाँ- दलितों, शोषितों और पीड़ितों की
नहीं माँगेगा कोई न्याय
माफी सुनने के लिए नहीं रहेगा इतिहास, कला,संस्कृति और धर्म भी
नहीं बचेगी कोई कविता
न लंबे उपन्यास
न छोटी कहानियाँ
क्या तब भी अंबानी की पत्नी नहा पाएगी दृश्यानुकूल स्नानागार में !
क्या तब भी जिंदा रह लेगा यह देश
क्या सिनेमा घरों में तब भी बजता रहेगा राष्ट्रगान !
क्या तब भी गुंजेगा वंदे मातरम !
क्या तब भी जबर्दस्ती बोलवाई जाएगी भारत माता की जय !
क्या तब भी बचे रहेंगे चुनाव चिह्न !
क्या तब भी ...
© शैलेन्द्र कुमार शुक्ल

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