Saturday, 14 April 2018

प्रमोद बेड़िया की कविता प्रलाप

प्रलाप

यह मृत्यु उपत्यका मेरा देश नहीं है
यह बलात्कारी समय मेरा समय नहीं है
यह मृत्यु का मैदान मेरा नहीं है
यह लोशों के ढेर कैसे हैं,किसने जमा किए हैं
यह भूखों के जुलूस बढ़ते क्यों जा रहे है
यह बच्चियों और औरतों की चित्कारों ने
मुझे पागल कर दिया है
यह कौन-सा देश है,कौन राजा है
यह कहाँ से आया,कौन है ये जो दिनरात
बोलते ही रहता है,हमेशा झूठ बोलता है
थकता भी नहीं,दिन भर घूमता रहता है
मेरा  देश-मेरा देश कहते रहता है
कभी भी जनता का देश नहीं कहता है
बिना खिलाए ही हगने कहता है
शौचालय में पड़े रहने कहता है
ऐसी फ़ौज जमा कर ली है जो रात दिन के
उत्पाती हैं,सारा देश क़ब्ज़ाए हैं

यह देश तो मेरा नहीं है
तुम इसे रखो,हमारी हिम्मत होगी
तो हम छीन लेंगे !

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